(अर्जुन झा)
खैरागढ़। जिस खैरागढ़ में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति कमजोर थी, वहां उसमें वक्त के साथ बहुत बदलाव आ चुका है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खैरागढ़ में तीसरे क्रम पर थी और लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव संसदीय सीट के परिणाम प्रमाण हैं कि खैरागढ़ में कांग्रेस पनप नहीं पाई थी। कांग्रेस छोड़ने वाले देवव्रत सिंह के रहते खैरागढ़ में कांग्रेस के लिए कोई खास गुंजाइश नहीं थी। अब उनके निधन पर रिक्त सीट पर उपचुनाव हो रहा है तब इस पर मंथन करना होगा कि जिस विधानसभा चुनाव के समय पूरे राजनांदगांव जिले में भाजपा से केवल तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ही जीत हासिल कर सके थे, उस जिले की खैरागढ़ सीट पर देवव्रत सिंह नई नवेली जनता कांग्रेस की टिकट पर कैसे जीत गए थे। उस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने लोधी बहुलता के आधार पर लोधी समाज से प्रत्याशी उतारे थे। लोधी वोट भाजपा और कांग्रेस में विभाजित हो गए। देवव्रत को इसका अंदाजा पहले से ही था तो उनकी निगाह गैर लोधी वोट पर थी। उन्होंने ज्यादा मेहनत उसी तरफ की और चुनाव जीत लिया था। अब उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने लोधी प्रत्याशी खड़े किए हैं तो जाहिर है कि दोनों ही सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं तो इनके बीच सामाजिक वोटों का बंटवारा होगा। ऐसी स्थिति में गैर लोधी वोट ही फैसला करेंगे कि खैरागढ़ का लोकतांत्रिक नाथ कौन होगा। जो गैर लोधी मतों को साध लेगा, उसकी जीत तय है। ऊपरी तौर पर कांग्रेस और भाजपा जातीय समीकरण के आधार पर जूझ रही है। लेकिन दोनों की नजर गैर लोधी मतदाताओं पर ही है। यहां लोधी समाज के अलावा गोड़, साहू, यादव, सतनामी, पटेल और निषाद समाज के लोगों के मत निर्णयक साबित होंगे। कांग्रेस ने यशाेदा वर्मा और भाजपा ने कोमल जंघेल को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन यहां लोधी समाज के मुकाबले गोंड, साहू और अन्य वर्ग के मतदाताओं का समर्थन जिसे मिलेगा वही इस चुनाव में जीत पाएगा। अनुमान है कि खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में लोधी मतदाताओं की संख्या 42 हजार, गोंड 29 हजार, साहू 24 हजार, यादव 18 हजार, सतनामी 16 हजार, पटेल 12 हजार और निषाद समाज के 7 हजार से ज्यादा वोट हैं। कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत ताम्रध्वज साहू को चुनावी जिम्मा सौंपा है। कांग्रेस ने 60 सेक्टर बनाकर 300 बूथों की कमान 20 विधायकों को दी है तो भाजपा ने खैरागढ़ के पांच मंडलाें में प्रभारी ओर सह प्रभारी बनाए हैं। भाजपा ने नामांकन के बाद से यहां पर प्रचार में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के नेतृत्व में पदाधिकारियों को उतारा है तो कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही असल चुनावी सिरमौर हैं तो अन्य पिछड़ा वर्ग का कांग्रेस के प्रति कितना झुकाव होता है, यही फैसले का आधार होगा।